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कोरोना? : तो मान लिया जाए कभी खत्म नहीं होगा एक्सपर्ट्स की बढ़ी टेंशन..

  छत्तीसगढ़ कौशल न्यूज । पिछले  वर्ष हम सोच रहे थे कि कुछ समय बाद कोरोना वायरस से उपजी महामारी समाप्त हो जाएगी और फिर हमारा जीवन 'सामान्...


 छत्तीसगढ़ कौशल न्यूज । पिछले वर्ष हम सोच रहे थे कि कुछ समय बाद कोरोना वायरस से उपजी महामारी समाप्त हो जाएगी और फिर हमारा जीवन 'सामान्य' हो जाएगा. लेकिन यह सोच निश्चित रूप से गलत साबित हुई है. फ्लू की तरह ही SARS-CoV-2 मानव का स्थायी दुश्मन बन सकता है. यह फ्लू की तरह ही नुकसानदायक होगा, लेकिन उससे कहीं ज्यादा बुरा होगा...और यदि यह धीरे-धीरे खत्म भी हो गया तो हमारा जीवन और रोजमर्रा की जिंदगी तब तक पूरी बदल चुकी होगी. तब जीवन के फिर से 'पटरी' पर आने का विकल्प खत्म हो गया होगा और सिर्फ आगे बढ़ना होगा, लेकिन सवाल है कि वास्तव में क्या होगा?

यह आम बात है कि आबादी अगर एक बार हर्ड इम्युनिटी यानी बीमारी से लड़ने की क्षमता हासिल कर लेती है तो महामारी खत्म हो जाती है और अधिकतर लोगों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी होती है. ऐसे में संक्रामक बीमारी को फैलने की आशंका न्यूनतम हो जाती है. यह प्रतिरोधक क्षमता उनमें विकसित होती जो संक्रमण से उबर चुके हैं. टीकाकरण के बाद उनमें प्राकृतिक रूप से हर्ड इम्युनिटी भी विकसित हो चुकी होती है. दुनियाभर में यह एक सिलसिला है जो महामारियों से उबरने के दौरान देखने को मिलता है ।

मगर कोरोना के मामले में हालिया घटनाक्रम बताते हैं कि शायद कोविड-19 से लड़ने के लिए हम कभी हर्ड इम्युनिटी हासिल नहीं कर पाएं. यहां तक कि अमेरिका में जहां सबसे ज्यादा संक्रमण के मामले सामने आए और जहां दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले सबसे तेजी से वैक्सीनेशन हो रहा है, वहां भी यह मुमकिन नहीं हो पा रहा है. यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन के क्रिस्टोफर मूर्रे और लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रोपिकल मेडिसिन के पीटर पियोट ने अपने विश्लेषण में यही पाया ।

ब्लूमबर्ग के एक लेख मुताबिक, इसकी मुख्य वजह है जो नए वेरिएंट्स मिल रहे हैं उनका रवैया, बिल्कुल नए वायरस की तरह है. दक्षिण अफ्रीका में एक समूह पर क्लिनिकल ट्रायल के दौरान पाया गया कि वो पहले एक स्ट्रेन से संक्रमित थे लेकिन बाद में उनमें उसके म्यूटेंट से लड़ने को लेकर हर्ड इम्युनिटी या प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं हुई और वे फिर से संक्रमित हो गए. ब्राजील के कुछ हिस्सों से इसी तरह की रिपोर्ट्स मिलीं जहां कोरोना का प्रकोप था और बाद में उन्हें नए सिरे से महामारी का सामना करना पड़ा ।

लिहाजा, मौजूदा महामारी से निपटने का एक मात्रा रास्ता संपूर्ण टीकाकरण बचता है, और वास्तव में कुछ वैक्सीन नए वेरिएंट्स से निपटने में सक्षम हैं लेकिन कुछ समय बाद म्यूटेंशन्स के खिलाफ वे कारगर साबित नहीं होंगे. बेशक वैक्सीन निर्माता पहले से ही नए टीकों को तैयार करने को लेकर काम कर रहे हैं. विशेष रूप से, जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है कि mRNA तकनीक के आधार पर कोरोना के टीका को इतिहास के किसी भी टीके की तुलना में तेजी से अपडेट किया जा सकता है. लेकिन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को अब भी टीका बनाने, उसे भेजने, वितरित करने और उसे लगवाने की जरूरत है. अगर टीकाकरण की प्रक्रिया को पर्याप्त तरीके से तेज नहीं किया गया ।

 और पूरी दुनिया का वैक्सीनेशन नहीं हो पाया तो मुश्किल खत्म होने वाली नहीं है. मुमकिन है कि दुनिया के किसी छोटे से हिस्से में मामूली सी आबादी का टीकाकरण पूरा हो जाए जैसा इजरायल ने किया. लेकिन यह कारगर नहीं होगा क्योंकि वायरस फिर नए रूप में सामने आएगा और उनकी तलाश कर लेगा जिनका वैक्सीनेशन नहीं हुआ है और फिर वहां वो अपना नया RNA तैयार कर लेगा. ये वायरल अचानक से वहां उभरकर सामने आ जा रहे हैं जहां तेजी से संक्रमण हो रहे हैं. नए वायरल नए शिकार की तलाश में रहते हैं. ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका और कम से कम ब्राजील के स्ट्रेन पहले से ही खतरनाक साबित हो रहे हैं ।

लेकिन रिपोर्ट्स से पता चला कि कैलिफ़ोर्निया, ओरेगन जैसी अन्य जगहों पर इस वायरल के चचेरे-ममेरे भाई और भतीजे पैदा हो गए हैं. यानी नए स्ट्रेन उभरकर सामने आए. अगर और अधिक नमूनों का सिक्वेंसिंग की जाए तो और अधिक वायरल के बारे में पता चलेगा. इसलिए हमें यह मान लेना चाहिए कि यह वायरस पहले से ही कई गरीब देशों में तेजी से म्यूटेशन पैदा कर रहा है जहां अभी तक वैक्सीनेशन नहीं हो पाया है. यह अलग बात है कि उन देशों में आबादी में युवाओं की बड़ी हिस्सेदारी होने की वजह से वहां मृत्युदर अभी कम है और फेस मास्क से भी भी मौतों का आंकड़ा कम है. पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुतेरस ने दुनिया का ध्यान इस बात की तरफ दिलाया था कि विश्व का 75% टीकाकरण महज 10 देशों में हो रहा है ।

 जबकि 130 देश ऐसे भी हैं जहां अभी तक एक शख्स को भी कोरोना का टीका नहीं लग पाया है. बहरहाल, जानलेवा वायरस का विकास न तो आश्चर्यजनक है


और न ही चिंताजनक. दुनियाभर में यह पैटर्न देखा गया है कि समय के साथ साथ वायरस अधिक संक्रामक और कम नुकसानदायक हो जाते हैं. यदि यह पैटर्न SARS-CoV-2 के साथ भी नजर आया तो यह एक सामान्य सा सर्दी-जुकाम का मामला बनकर रह जाएगा. लेकिन अभी ऐसा दिख नहीं रहा है. जिन वेरिएंट के बारे में हम जानते हैं वे अधिक संक्रामक हो गए हैं, लेकिन कोई कम घातक नहीं है. एक महामारी विशेषज्ञ के नजरिये से देखा जाए तो यह सबसे बुरी खबर है. लंदन स्कूल ऑफ हाइजिन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के एडम कुचार्स्की बताते हैं कि वायरस के दो पहलुओं पर विचार करने की जरूरत है. पहला, एक वायरस अधिक गंभीर, लेकिन अधिक संक्रामक नहीं होता है. यह बीमारी को बढ़ाएगा और मौतें होंगी मगर इसका विकास सीधी रेखा में होता है ।

 दूसरा, एक म्यूटेटिंग विषाणु न ज्यादा फैलता है और न ज्यादा खतरनाक होता है लेकिन वो अधिक संक्रामक होता है. यह ज्यादा घातक और जानलेवा होता है. एडम कुचार्स्की के अनुसार SARS-CoV-2 सीधी रेखा में चलने वाला वायरस है तो पूरी दुनिया कोरोना के अंतहीन प्रकोप, सोशल डिस्टेंसिंग, सख्ती में राहत, लॉकडाउन, अनलॉक की इन्हीं प्रक्रिया में उलझी रहेगी. कम से कम अमीर देशों में, शायद साल में एक-दो बार टीकाकरण करवाएंगे, लेकिन सामने आने वाले नए वेरिएंट के खिलाफ सामूहिक रूप से हर्ड इम्युनिटी हासिल करने के लिए यह पर्याप्त नहीं होगा. इतिहास के पन्ने बताते हैं कि कोविड-19 तुलनात्मक रूप कम घातक महामारी है। 

 16वीं शताब्दी में जब चेचक फैला तो स्पेनिश लोगों के जरिये अमेरिका में दाखिल हुई इस बीमारी के 10 में से 9 लोग शिकार बने. छठवीं शताब्दी में जब बीमारी पहली बार यूरोप में फैली तो करीब आधी आबादी खत्म हो गई. अब तक के आंकड़े बताते हैं कि दुनियाभर में कोरोना से 10 हजार में चार लोग मर रहे हैं. जिस तरह आज हम साइंस और टेक्नोलॉजी से लैस हैं, वह सुविधा हमारे पूर्वजों को नहीं मिली ।

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